कविता : स्वार्थ व्यवहार
कविता
स्वार्थ व्यवहार
लेखक ः मनोज पण्डित
बिदेह न.पा. ७,
वेलापटटी, धनुषा
सोचु सोचु बाबु भैया बरहु अहाँ अगारी
कोई नै अहाँके साथ देत खिचत टाङ पछारी (हेयांै खिचत टाङ पछारी)
चारो दिस नगर दियौं देखबै खाली स्वार्थी
पिछा पारत अहाँके बनाके अपन साथी
कडा मेहनत कके जीवन करु तैयारी
कोई नै अहाँके साथ देत खिचत टाङ पछारी
अगलबगल देखबै अहाँ नजर खिराके
जे करत ठगी बैमानी चलतशीर उठाके (हेयौं चलत शीर उठाके)
भित्री स दुश्मन रहत नातास भाइचारी
कोइ नै अहाँके साथ देत खिचत टाङ पछारी
अहाँसन हमरा कहत नै हाकोई हित
सहयोगके बेरमे भागत देखाके अपन पीठ ।।
इहे छै लोगके बरका बेमारी
कोइ नै अहाँके साथदेत खिचत टाङ पछारी,
( हेयौं खिचत टाङ पछारी) ।।
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